लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से)
यादों के झरोखे से:-
यह बात उस समय की है, जब मैं मात्र 6-7 वर्ष की थी। मुझे सोते समय कहानियां सुनकर सोना बहुत पसंद था। कभी मेरी माताजी मुझे कहानी सुनाती तो कभी पिताजी। जब माताजी को कोई कहानी याद नहीं आती तो वह मुझे पिताजी को सौंप देती। पिताजी मुझे शारेदों की बहादुरी के किस्से सुनाते और मैं सो जाती थी। माताजी के पास ज्यादातर चिड़ा -चिड़िया की कहानी होती थी, उससे मैं सुन सुन कर थक जाती। एक समय ऐसा आता कि मैं स्वयं मेरी माताजी को वह कथा सुनाने लग जाती। पिताजी के पास भी शहीदों की वीरता के किस्से होते थे। उनमें से ज्यादातर वे मुझे वीर सावरकर की समंदर में कूदने के बावजूद जीवित रहने वाली कथा सुनाते। अंत में मुझे सीख देते की इच्छा शक्ति में ही हमारी सबसे बड़ी ताकत होती है। हम जो चाहें दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर कर सकते हैं।
एक और कथा जो वे मुझे सुनाते वह नेवले और सांप की होती थी। जिसमे घर का मालिक नेवले को बिना सोचे समझे मार देता है। उससे वे मुझे सीख देते कि हमें कोई भी कार्य बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए। शायद ये सभी कथाएं मेरे भीतर इस कदर बस गई कि जब भी जीवन में कोई मुश्किल समय या निर्णय लेने की स्तिथि आती, मुझे यही कहानियां याद हो आती। एक तरह से बचपन में सुनी इन कथाओं ने मुझे प्रेरणा देने का। कार्य किया है।
फिर जब घर पर दादीजी आती, तो मैं उनके पीछे पड़ जाती। उनसे जिद करने लगती कि मुझे तो कहानी सुननी ही है। चाहे जो हो जाए कहानी सुने बिना मैं यह से हिलूंगी भी नहीं। वह बेचारी मेरी जिद के समक्ष मजबूर हो जाती। कभी राजा रानी के किस्से तो कभी पापा बुआ के बचपन के किस्से, कभी दादाजी के किस्से तो कभी खुद के किस्से वे सुनाती। मेरी माताजी चाहे कितना भी मुझे डांटे, परंतु मुझ पर उसका कोई असर नहीं होता था। दादी से कहानी सुननी है तो सुननी ही है।
जब भी मैं किसी छोटे बच्चे को अपने माता- पिता से मोबाइल के लिए जिद करते देखती हूं। मुझे अपना बचपन याद आ जाता है। तब यही लगता है कि इन मासूम बच्चों का जीवन बस मोबाइल तक ही सीमित हो चुका है। ना तो ये दादा दादी के किस्से ही जानते समझते हैं। ना ही ये किसी तरह की कोई कथा ही सुन पाते हैं। तब लगता है इस स्तिथि में हम आज के बच्चों से नैतिकता की क्या अपेक्षा कर सकते हैं। हमें तो हमारे बड़ों ने विभिन्न कथाओं के ज़रिए नैतिकता कितनी सरलता से सीखा दी। परंतु, इन बच्चों की इस दशा पीटी मुझे काफी दया आती है। खैर जो भी हो मुझे मेरे बचपन के दिन याद करना बेहद पसंद है। यदा कदा जब भी फुरसत के पल मिलते हैं में अतीत में विचरण कर ही लेटी हूं।
Babita patel
24-Aug-2023 06:35 AM
amazing
Reply
Swati Sharma
28-Mar-2024 10:40 PM
thanks
Reply
madhura
17-Aug-2023 04:55 AM
nice
Reply
Swati Sharma
28-Mar-2024 10:40 PM
thnks
Reply
Gunjan Kamal
25-Nov-2022 11:12 AM
👏👌🙏🏻
Reply
Swati Sharma
25-Nov-2022 12:12 PM
🙏🏻😇😊
Reply